पत्नी से चर्चा करके ही अपना रोल चुनते हैं आयुष्मान खुराना; कहा- भाग्यशाली हूं कि अचानक कामयाबी नहीं मिली

पत्नी से चर्चा करके ही अपना रोल चुनते हैं आयुष्मान खुराना; कहा- भाग्यशाली हूं कि अचानक कामयाबी नहीं मिली


लखनऊ। बॉलीवुड में लगातार सुपर हिट फिल्में देने वाले स्टार आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ सिनेमाघरों में रिलीज हुई है। समलैंगिक जोड़े पर बनी यह फिल्म दर्शकों को पसंद आ रही है। अपनी फिल्मों में अलग-अलग किरदार निभाने वाले स्टार आयुष्मान खुराना ने भास्कर से खास बातचीत में बताया कि वह पत्नी से चर्चा करके ही अपने लिए रोल चुनते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे सफलता अचानक नहीं मिली। रातोंरात मिली सफलता लोगों के सिर पर चढ़ जाती है। पेश हैं आयुष्मान से बातचीत के अंश...


सवाल: शुभ मंगल ज्यादा सावधान में आप 'गे' का किरदार निभा रहे हैं। इसके लिए क्या-क्‍या तैयारियां की?
आयुष्मान: मैं फिल्‍म में 'होमोसेक्शुअल गे' का किरदार कर रहा हूं। इसके लिए यह समझना जरूरी था कि रोजाना की जिंदगी में उन्‍हें क्‍या दिक्‍कतें आती हैं, उनकी क्या मुश्किलें हैं.. जिसके लिए जरूरी था 'ऑब्जरवेशन' करना। कैसे वे बिहेव करते हैं? समाज को लेकर उनकी सोच क्या है? ऑब्जर्वेशन करना बहुत जरूरी है, जो मैंने किया। इस तरह के लोग हर जगह हैं, कॉर्पोरेट सेक्टर में भी हैं.. सिनेमा में भी हैं। उनके लिए स्पेस भी है, लेकिन हर जगह वे खुलकर बता नहीं पाते।


सवाल: आप अलग-अलग किरदार निभाते हैं। अलग किरदारों के लिए क्या तैयारी करनी होती है?
आयुष्मान: मेरी स्क्रिप्ट मुझसे पहले दो लोग पढ़ते हैं। मेरी वाइफ और मैनेजर। फिर हम लोग आपस में चर्चा करते हैं। मैं प्रोग्रेसिव फैमिली से हूं, इसलिए मेरी फैमिली को ऐसे रोल करने से कोई दिक्कत नहीं है।


सवाल: किस तरह के किरदारों को करने में आपको ज्यादा तैयारी करनी होती है?
आयुष्मान: उन रोल करने में दिक्कत आती है, जो मैंने देखा न हो। जैसे अंधाधुंध और आर्टिकल 15 जैसी मूवी को करने के लिए मुझे ज्यादा तैयारी करनी पड़ी।


सवाल: शुभ मंगल ज्यादा सावधान कॉमेडी के जरिए संवेदनशील मुद्दे को ढंग से उठा पाएगी?
आयुष्मान: मेरी फिल्‍म से लोगों में मैसेज जाएगा कि उनको वैसे ही अपनाओ जैसे वे हैं, 'गे' कोई बीमारी नहीं है। कुछ दिन पहले एक लड़के ने सुसाइड कर लिया, क्योंकि घरवालों ने उसे निकाल दिया। जब उनको पता चला कि उनका बेटा 'गे' है। समलैंगिकता को सुप्रीम कोर्ट ने भी इजाजत दे दी है। कॉमेडी के साथ इस फिल्‍म को इसलिए लाया गया है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग देख सकें। इससे पहले कई सीरियस फिल्में इस मुद्दे पर आ चुकी हैं, जो कमर्शियली फ्लॉप रहीं। अगर फिल्म गंभीर बनाएंगे तो वही लोग देखेंगे, जो समलैंगिक लोगों के साथ खड़े है। हम अगर ऐसी फिल्म कॉमेडी और कमर्शियल फैक्टर के साथ बनाएंगे तो उसे वे भी देखेंगे जो ऐसे मुद्दों के विरोध में हैं। इस मूवी को लोग एंटरटेनमेंट के लिए देखने आएंगे और एक मैसेज लेकर वापस जाएंगे।


सवाल: अमेरिकी राष्ट्रपति ने भी आपकी फिल्म की तारीफ ट्विटर पर की है। उनके लिए क्या संदेश है?
आयुष्मान: अमेरिका के राष्ट्रपति का मेरी फिल्म को लेकर ट्वीट करना मेरे लिए बहुत सरप्राइजिंग था। हालांकि, उन्होंने फिल्‍म देखी नहीं है, लेकिन हम यही आशा करते हैं कि उनके देश में ऐसे समुदाय के लोगों के लिए उनको कुछ करना चाहिए।


सवाल: फिल्म से जुड़े लोग देश के मुद्दों पर कम बोलते हैं, ऐसा क्यों?
आयुष्मान: मुझको लगता है हमें आर्टिस्ट और एक्टीविस्ट में फर्क महसूस करना चाहिए। एक आर्टिस्ट अपनी कला के जरिए अपनी बात सामने रख सकता है। अगर मैं एक्टिविस्ट के तौर पर कोई मोर्चा खोलूं तो 100 से हजार लोग इकट्ठा होंगे। अगर उसी मुद्दे पर मैं आर्टिस्ट के तौर पर फिल्म करूंगा तो उसे करोड़ों लोग देख सकते हैं। इसलिए आर्टिस्ट की ताकत एक्टिविस्ट से ज्यादा है। किसी मुद्दे पर ट्वीट करने से बेहतर है कि मैं उस मुद्दे पर फिल्म बनाऊं, जिसे दुनिया देखे। मुझे नारेबाजी करने की जरूरत नहीं है। मैं आर्टिस्ट हूं, आर्ट के जरिए ही बात रखूंगा।


सवाल: अपनी लाइफ में टाइम मैनेजमेंट कैसे करते हैं?
आयुष्मान: अगर आपका पैशन ही प्रोफेशन बन जाए तो टाइम मैनेजमेंट करना कोई बड़ी बात नहीं। पिछले साल एक के बाद एक मूवी करने में बहुत ही ज्यादा टाइम मैनेजमेंट शेड्यूल टाइट था। इसके एक के बाद एक फिल्म करने में एक से दो महीने का गैप रखने का प्रयास कर रहा हूं। जब परिवार समझता हो कि आपका प्रोफेशन कैसा है तो कोई दिक्कत नहीं होती।


सवाल: आपने 'गे' टॉपिक पर फ़िल्म करने के लिए एक बार में हां कर दिया या स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद इस किरदार को निभाने का मन हुआ?
आयुष्मान: मैं एक ऐसी ही फिल्म ढूंढ रहा था, तभी मुझे ऑफर भी आ गया। 2020 में ये फिल्म बननी ही चाहिए थी। आज से 10 साल पहले ये फ़िल्म बन ही नहीं सकती थी। 6 से 7 साल में हमारा देश बदल गया है। ऐसे मुद्दों को स्वीकार करने के लिए इस फिल्म के आने का यह सही समय है।


सवाल: अब तो आप सफलता के चरम पर हैं, हर फिल्म सुपरहिट हो रही है, कैसा लगता है?
आयुष्मान: मुझे अचानक से सक्सेस नहीं मिली है। मुझको धीमे-धीमे सक्सेस मिली और इसको मैं सही भी मानता हूं। अगर रातोंरात सक्सेस मिले तो सिर पर चढ़ जाती है। मैं खुद को भाग्यशाली समझता हूं। स्ट्रगल तो हमेशा चलता रहता है। कभी नीचे से ऊपर जाने के लिए तो कभी बने रहने के लिए। 2012 में ‘विकी डोनर’ मेरी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट थी।